Sarnath


सारनाथ: धर्मचक्र प्रवर्तन की पवित्र भूमि

सारनाथ, जिसे प्राचीन काल में 'ऋषिपत्तन' और 'मृगदाव' के नाम से जाना जाता था, वाराणसी से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित एक अत्यंत महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थस्थल है। यह वह पवित्र स्थान है जहाँ गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपना पहला उपदेश दिया था। इस उपदेश को बौद्ध धर्म में "धर्मचक्र प्रवर्तन" के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है "धर्म के पहिये को गति देना"। इसी घटना के साथ बौद्ध संघ और धर्म की स्थापना हुई थी, जिसने सारनाथ को बौद्ध अनुयायियों के लिए दुनिया के सबसे पूजनीय स्थलों में से एक बना दिया।


सारनाथ का ऐतिहासिक महत्व

सारनाथ का इतिहास ईसा पूर्व 5वीं शताब्दी में गौतम बुद्ध के आगमन के साथ शुरू हुआ। बुद्ध ने यहाँ अपने पाँच शिष्यों - कौण्डिन्य, भद्दिय, वप्प, महानाम और अस्सजि - को अपना पहला उपदेश दिया। यह उपदेश जीवन के चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग पर केंद्रित था, जो बौद्ध धर्म का मूल सिद्धांत है।

बाद में, सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए सारनाथ में कई स्तूपों और विहारों का निर्माण करवाया। उन्होंने यहाँ एक विशाल स्तंभ भी स्थापित किया, जिसका शीर्ष भाग भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है। गुप्त काल (चौथी से छठी शताब्दी) में सारनाथ कला और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। हालांकि, 12वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा इसे बुरी तरह से नष्ट कर दिया गया। 19वीं शताब्दी में, ब्रिटिश पुरातत्वविदों द्वारा यहाँ की खुदाई शुरू हुई और इसके खोए हुए गौरव को फिर से खोजा गया।


प्रमुख दर्शनीय स्थल

सारनाथ में कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं जो पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं:

  • धमेक स्तूप: यह सारनाथ का सबसे प्रमुख और प्रभावशाली स्मारक है। माना जाता है कि इसी स्थान पर बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। यह एक विशाल बेलनाकार संरचना है, जिसकी निचली सतह पर सुंदर नक्काशी की गई है। यह स्तूप गुप्त काल का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

  • चौखंडी स्तूप: यह एक चौकोर टीले पर बना एक प्राचीन स्तूप है। इसका निर्माण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था, लेकिन 16वीं शताब्दी में मुगल सम्राट हुमायूँ के यहाँ कुछ समय रुकने की याद में, एक अष्टकोणीय टॉवर इसके ऊपर बनाया गया था।

  • अशोक स्तंभ: मूल रूप से 50 फीट ऊंचा यह स्तंभ सम्राट अशोक द्वारा स्थापित किया गया था। इसका प्रसिद्ध सिंह शीर्ष (चार शेरों वाली राजधानी) अब सारनाथ के पुरातात्विक संग्रहालय में रखा गया है और भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।

  • सारनाथ पुरातत्व संग्रहालय: यह भारत के सबसे महत्वपूर्ण संग्रहालयों में से एक है। इसमें अशोक स्तंभ के सिंह शीर्ष के अलावा, मौर्य, कुषाण और गुप्त काल की कई मूल्यवान मूर्तियां, कलाकृतियां और शिलालेख रखे गए हैं, जो सारनाथ के गौरवशाली इतिहास को दर्शाते हैं।

  • मूलगंध कुटी विहार: यह एक आधुनिक मंदिर है जो श्रीलंका के महाबोधि सोसाइटी द्वारा बनाया गया है। इसकी दीवारों पर महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण दृश्यों को दर्शाने वाले भित्ति चित्र हैं। यहाँ एक बोधि वृक्ष भी लगाया गया है, जिसे श्रीलंका के अनुराधापुरा में स्थित बोधि वृक्ष की एक शाखा से उगाया गया था।

  • विभिन्न देशों के मठ: सारनाथ में थाईलैंड, जापान, श्रीलंका, तिब्बत और बर्मा जैसे देशों द्वारा बनाए गए कई बौद्ध मठ और मंदिर हैं, जो यहाँ की अंतर्राष्ट्रीय पहचान को दर्शाते हैं।


सारनाथ का वर्तमान स्वरूप

आज सारनाथ एक शांत और आध्यात्मिक नगरी है जो वाराणसी के भीड़-भाड़ वाले माहौल से बिल्कुल अलग है। यह स्थान न केवल बौद्धों के लिए बल्कि इतिहास और कला प्रेमियों के लिए भी एक अनमोल धरोहर है। यहाँ के शांत बगीचे, खंडहर और प्राचीन स्मारक आगंतुकों को एक शांतिपूर्ण और चिंतनशील अनुभव प्रदान करते हैं। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ आप भारत के गौरवशाली इतिहास, समृद्ध संस्कृति और गहन आध्यात्मिकता को महसूस कर सकते हैं।