भारत की हृदय-स्थली, उत्तर प्रदेश में बसी एक ऐसी नगरी, मथुरा, जिसका नाम सुनते ही मन में एक अलौकिक छवि उभरती है। यह सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक पवित्र भूमि है, जहां प्रेम, भक्ति और शौर्य के देवता भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। मथुरा की इसी पावन धरा पर स्थित है श्री कृष्ण जन्मस्थान, जिसे हर साल लाखों श्रद्धालु और पर्यटक देखने आते हैं। यह मंदिर सिर्फ ईंटों और पत्थरों का एक ढांचा नहीं, बल्कि सदियों का इतिहास, अनगिनत कथाएं और एक अटूट आस्था का प्रतीक है।
इतिहास की परतों में छिपा जन्मस्थान
श्री कृष्ण जन्मस्थान का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही गहरा और रोमांचक भी है। यह माना जाता है कि इसी स्थान पर, आज से लगभग 5,200 साल पहले, राजा कंस के कारागार में माता देवकी और पिता वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। यह वह पवित्र क्षण था जब धरती पर धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिए स्वयं भगवान अवतरित हुए।
इस दिव्य स्थान पर पहला मंदिर भगवान कृष्ण के परपोते, वज्रनाभ द्वारा बनवाया गया था। इसके बाद समय-समय पर कई शासकों ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। छठी शताब्दी ईसा पूर्व से ही इस जगह का धार्मिक महत्व रहा है, और यह विभिन्न पुरातात्विक खुदाई में मिले साक्ष्यों से भी साबित होता है। 400 ईस्वी में सम्राट विक्रमादित्य ने यहां एक विशाल और भव्य मंदिर बनवाया था, जो अपनी कला और वास्तुकला के लिए मशहूर था। लेकिन इतिहास के क्रूर पन्नों में इसका कई बार विनाश हुआ। 11वीं शताब्दी में महमूद गजनवी और 16वीं शताब्दी में सिकंदर लोदी ने इस मंदिर को तोड़ा। 1618 में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने इसे फिर से बनवाया, लेकिन 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने इसे ध्वस्त कर इसके एक हिस्से पर शाही ईदगाह का निर्माण करा दिया।
आधुनिक युग में, यह स्थान एक कानूनी लड़ाई का केंद्र बना रहा। 1944 में पंडित मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से इस भूमि को औद्योगिक घराने डालमिया के हाथों में सौंपा गया, जिन्होंने यहां एक नया भव्य मंदिर परिसर बनाने का संकल्प लिया। अंततः, 1958 में वर्तमान स्वरूप में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और 1965 में इसका उद्घाटन हुआ। यह मंदिर अब श्री कृष्ण जन्मभूमि न्यास द्वारा प्रबंधित है और भक्तों के लिए एक शांत, सुंदर और आध्यात्मिक तीर्थस्थल बन चुका है।
वास्तुकला की एक झलक
श्री कृष्ण जन्मस्थान मंदिर परिसर अपनी भव्य वास्तुकला और सुंदरता के लिए जाना जाता है। यह मंदिर नागर शैली में बना है, जो उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला की एक शानदार मिसाल है। मंदिर परिसर के तीन मुख्य भाग हैं: गर्भ गृह, भागवत भवन और केशवदेव मंदिर।
- गर्भ गृह: यह मंदिर का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह वही जगह है जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। एक छोटे, शांत कक्ष में, संगमरमर का एक चबूतरा है, जिसके नीचे पुरानी जेल के अवशेष भी मौजूद हैं। इस गर्भगृह में दर्शन करते ही हर भक्त को एक गहरी शांति और जुड़ाव का अनुभव होता है।
- भागवत भवन: यह मुख्य मंदिर है, जहां भगवान कृष्ण और राधा रानी की सुंदर प्रतिमाएं स्थापित हैं। इस भवन की दीवारों और छतों पर भगवान कृष्ण की लीलाओं, जैसे रासलीला और गोवर्धन लीला, के सुंदर चित्र और कलाकृतियां बनी हुई हैं। मंदिर की परिक्रमा में तांबे की प्लेटों पर पूरी श्रीमद् भगवद्गीता उत्कीर्ण है, जो भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करती है।
- केशवदेव मंदिर: यह मंदिर परिसर में एक और महत्वपूर्ण मंदिर है, जिसका निर्माण 20वीं शताब्दी में किया गया था। यह मंदिर अपनी मनमोहक मूर्तियों और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है।
मंदिर परिसर में और भी कई दर्शनीय स्थल हैं, जैसे पोतरा कुंड, जिसे लेकर यह मान्यता है कि शिशु कृष्ण के जन्म के बाद माता देवकी ने उनके वस्त्र इसी कुंड में धोए थे। इसके अलावा, एक प्राचीन कुआं भी है, जिसे कृष्ण के जन्म से भी पुराना माना जाता है।
त्योहारों की नगरी मथुरा
मथुरा में साल भर कई त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन श्री कृष्ण जन्मस्थान पर इनका महत्व और भी बढ़ जाता है।
- जन्माष्टमी: यह मथुरा का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को, आधी रात को, जब कृष्ण का जन्म हुआ था, मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और अभिषेक होता है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस भव्य उत्सव को देखने के लिए मथुरा आते हैं। पूरा मंदिर रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा उठता है और भक्ति संगीत से गूंज उठता है।
- नंदोत्सव: जन्माष्टमी के अगले दिन नंदोत्सव मनाया जाता है, जो कृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है।
- होली: मथुरा की होली विश्व प्रसिद्ध है, और कृष्ण जन्मस्थान पर इसका अलग ही रंग देखने को मिलता है। फूलों और रंगों की होली खेली जाती है, जो कृष्ण और राधा के प्रेम को दर्शाती है।
- दीपावली: दीपावली के अवसर पर, मंदिर परिसर में दीपदान का आयोजन होता है, जिसमें हजारों दीये जलाए जाते हैं, जिससे मंदिर की सुंदरता और भी बढ़ जाती है।
श्री कृष्ण जन्मस्थान सिर्फ एक तीर्थ स्थल नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा अनुभव है जो हर भारतीय के दिल में बसता है। यह वह स्थान है जहां आकर आप भगवान कृष्ण के जीवन की गहराई को महसूस कर सकते हैं। यह स्थान हमें सिखाता है कि आस्था और प्रेम की शक्ति से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। एक ट्रैवल ब्लॉगर के रूप में, यहां की यात्रा आपको न सिर्फ शानदार तस्वीरें देगी, बल्कि एक ऐसी कहानी भी देगी जो आपके पाठकों के दिलों को छू जाएगी।
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