Kaal bhairow Mandir

 

काल भैरव मंदिर, बनारस: काशी के कोतवाल

वाराणसी, जिसे काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है, भारत की आध्यात्मिक राजधानी है। यह शहर अपने प्राचीन मंदिरों, घाटों और जीवंत संस्कृति के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। इन अनगिनत मंदिरों में से एक महत्वपूर्ण और अद्वितीय मंदिर है - काल भैरव मंदिर। यह मंदिर भगवान शिव के रौद्र रूप, काल भैरव को समर्पित है, और काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं।

पौराणिक महत्व:

काल भैरव भगवान शिव के अत्यंत शक्तिशाली और उग्र अवतार माने जाते हैं। उनकी उत्पत्ति के संबंध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। इस विवाद में ब्रह्मा जी ने भगवान शिव का अपमान कर दिया। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने काल भैरव रूप धारण किया और ब्रह्मा जी के पाँचवें सिर को अपने नाखून से काट दिया। इसी कारण काल भैरव के हाथ में ब्रह्मा जी के कटे हुए सिर (कपाल) को दर्शाया जाता है। इस घटना के कारण उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा, जिससे मुक्ति पाने के लिए वे विभिन्न लोकों में भटकते रहे और अंततः काशी में उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, काल भैरव काशी नगरी की रक्षा करने वाले कोतवाल हैं। माना जाता है कि उनकी अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति काशी में प्रवेश नहीं कर सकता और न ही यहाँ से जा सकता है। यही कारण है कि काशी आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले काल भैरव के दर्शन करते हैं और उनसे नगर में रहने और सकुशल वापस लौटने की अनुमति मांगते हैं।

मंदिर का इतिहास और संरचना:

काल भैरव मंदिर वाराणसी के मैदागिन क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर का ऐतिहासिक उल्लेख स्कंद पुराण और काशी खंड जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है, जिससे इसकी प्राचीनता का पता चलता है। वर्तमान मंदिर का स्वरूप 17वीं शताब्दी में मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम द्वारा पुनर्निर्मित माना जाता है।

मंदिर का गर्भगृह अपेक्षाकृत छोटा है, जिसमें भगवान काल भैरव की काले पत्थर की एक भव्य मूर्ति स्थापित है। उनकी मूर्ति रौद्र रूप में, बड़ी-बड़ी आँखें, तीखे दाँत और हाथ में त्रिशूल, तलवार और कपाल धारण किए हुए दिखाई देती है। भैरव को अक्सर कुत्तों के साथ दर्शाया जाता है, और मंदिर के बाहर आपको कुत्ते भी घूमते हुए मिल जाएंगे, जिन्हें भैरव का वाहन माना जाता है।

मंदिर की वास्तुकला नागर शैली से प्रभावित है। शिखर और दीवारों पर देवी-देवताओं और पौराणिक दृश्यों की नक्काशी देखने को मिलती है। मंदिर परिसर में अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं जो विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं।

महत्व और पूजा विधि:

काल भैरव मंदिर का वाराणसी में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। काल भैरव को न्याय का देवता भी माना जाता है, इसलिए लोग अपनी समस्याओं और कष्टों के निवारण के लिए भी यहां प्रार्थना करते हैं।

  • विशेष पूजा: रविवार और मंगलवार को काल भैरव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इन दिनों मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
  • तेल और सिंदूर: काल भैरव को तेल और सिंदूर चढ़ाने की विशेष प्रथा है। भक्त उनकी मूर्ति पर तेल और सिंदूर अर्पित करते हैं और अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं।
  • काले धागे का महत्व: काल भैरव मंदिर में काले धागे का विशेष महत्व है। भक्त मंदिर से एक काला धागा प्राप्त करते हैं और उसे अपनी बाजू या गले में बांधते हैं। माना जाता है कि यह धागा नकारात्मक शक्तियों और बुरी नजर से रक्षा करता है।
  • शराब का भोग: काल भैरव को कुछ विशेष अवसरों पर मदिरा (शराब) का भोग भी लगाया जाता है। यह एक अनोखी परंपरा है जो इस मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग करती है।

काशी के कोतवाल के रूप में महत्व:

काल भैरव को काशी का कोतवाल या रक्षक माना जाता है। मान्यता है कि वे पूरी काशी नगरी की रक्षा करते हैं और हर व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। उनकी अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति काशी में स्थायी रूप से नहीं बस सकता और मृत्यु के बाद भी उनकी आज्ञा आवश्यक मानी जाती है। इसलिए, काशी आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु के लिए काल भैरव के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है।

सांस्कृतिक महत्व:

काल भैरव मंदिर वाराणसी की सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न अंग है। मंदिर के आसपास हमेशा चहल-पहल बनी रहती है। यहां फूल-माला, प्रसाद और धार्मिक वस्तुओं की दुकानें सजी रहती हैं। मंदिर के पास संकरे गलियों में आपको बनारस की पारंपरिक जीवनशैली और संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी।

निष्कर्ष:

काल भैरव मंदिर, बनारस न केवल एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भगवान शिव के उग्र रूप और काशी नगरी के संरक्षक के रूप में भी अद्वितीय है। इसका पौराणिक महत्व, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विशिष्ट पूजा विधियां इसे एक विशेष स्थान प्रदान करती हैं। काशी की यात्रा काल भैरव के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है। यह मंदिर भक्तों को आस्था, शक्ति और सुरक्षा का अनुभव कराता है और उन्हें काशी की आध्यात्मिक ऊर्जा से जोड़ता है।