कनक भवन अयोध्या में राम जन्म भूमि, रामकोट के उत्तर-पूर्व में है। कनक भवन अयोध्या के बेहतरीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यह भवन भगवान श्री राम जी से विवाह के तुरंत बाद महारानीकैकेयी जी द्वारा देवी सीता जी को उपहार में दिया गया था। यह देवी सीता और भगवान राम का निजी महल है। मान्यताओं के अनुसार मूल कनक भवन के टूट-फूट जाने के बाद द्वापर युग में स्वयं श्री कृष्ण जी द्वारा इसे पुनः निर्मित किया गया। माना जाता है कि मध्य काल में इसे विक्रमादित्य ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। बाद में इसे ओरछा की रानी वृषभानु कुंवरि द्वारा पुनर्निर्मित किया गया जो आज भी उपस्थित है। गर्भगृह में स्थापित मुख्य मूर्तियां भगवान राम और देवी सीता की हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या को भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में बसे हिंदुओं के लिए पवित्रतम तीर्थ माना जाता है। पुण्यदायिनी सरयू नदी की गोद में स्थित अयोध्या में कई ऐसे मंदिर हैं जो भक्तों को भगवान राम और उनके रामराज्य की अनुभूति कराते हैं। अयोध्या के इन्हीं मंदिरों में से एक है ‘कनक भवन’ जो स्वर्णमयी सुंदरता से परिपूर्ण है। इस मंदिर की विशेषता है कि इसकी संरचना जो एक विशाल महल की तरह है। कहा जाता है कि यह मंदिर एक महल ही था जिसे महाराज दशरथ ने अपनी पत्नी रानी कैकेयी के कहने पर देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा जी से बनवाया था।
माता सीता के साथ विवाह के बाद भगवान राम के मन में विचार आया कि मिथिला से महाराज जनक के वैभव को छोड़कर आने वाली सीता के लिए अयोध्या में भी एक दिव्य महल होना चाहिए। भगवान राम के मन में यह विचार आते ही अयोध्या में रानी कैकेयी के स्वप्न में एक स्वर्णिम महल दिखाई दिया। इसके बाद रानी कैकेयी ने महाराज दशरथ से अपने स्वप्न के अनुसार एक सुंदर महल बनवाने की इच्छा जाहिर की। रानी कैकेयी की इच्छा के बाद महाराज दशरथ ने देवशिल्पी विश्वकर्मा जी को बुलाकर रानी कैकेयी के कहे अनुसार एक सुंदर महल का निर्माण करवाया। जब माता सीता अयोध्या आईं तब रानी कैकेयी ने उन्हें यह महल मुँह दिखाई में दे दिया था।
कनक भवन प्रांगण में स्थापित शिलालेख में समय-समय पर इसके जीर्णोद्धार की जानकारियाँ वर्णित हैं। सबसे पहले श्रीराम के पुत्र कुश ने इस महल का जीर्णोद्धार करवाया और श्रीराम-माता सीता की अनुपम मूर्तियाँ स्थापित करवाईं। इसके बाद श्रीकृष्ण ने इस महल का पुनर्निर्माण कराया।
आधुनिक भारत के इतिहास में 2000 साल पहले चक्रवर्ती सम्राट महाराजा विक्रमादित्य और समुद्रगुप्त द्वारा भी कनक महल के जीर्णोद्धार की जानकारी मिलती है। वर्तमान में महल का जो स्वरूप है वह 1891 में ओरछा के राजा सवाई महेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी महारानी वृषभानु का निर्मित कराया हुआ है।
मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम, माता सीता, अनुजों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न सहित विराजमान हैं। भगवान राम और माता सीता ने स्वर्ण मुकुट पहन रखे हैं। मंदिर की विशेषता है कि यह मंदिर आज भी एक विशाल और अति सुंदर महल के समान प्रतीत होता है। मंदिर का विशाल आँगन इसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देता है। मंदिर का एक-एक कोना वैभव और संपन्नता की कहानी कहता है।
आज भी साधु-संत और श्रीराम के अनन्य भक्त यह विश्वास करते हैं कि महल में भगवान श्रीराम और माता सीता विचरण करते हैं। इसी विश्वास के कारण भगवान राम से जुड़ा यह मंदिर रामभक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। कहा जाता है कि मंदिर के प्रांगण में बैठे रहने पर किसी प्रकार की कोई चिंता मन में नहीं रह जाती है और व्यक्ति अपने सभी दुखों को भूलकर मात्र श्रीराम के चरणों में खो जाता है।
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